देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड में देश ही नहीं, विदेशों से भी श्रद्धालु यहां आते हैं। उत्तराखंड में चार धाम स्थित हैं, जिनमें से सबसे खास बदरीनाथ धाम है। बदरीनाथ धाम भगवान विष्णु को समप्रित है। यह तो सभी को मालूम है कि भगवान विष्णु को शंख की ध्वनि प्रिय लगती है, लेकिन उनके धाम भू-बैकुंठ बदरीनाथ (badrinath dham) में शंख (conch) नहीं बजता है। सभी मठ-मंदिरों में देवी-देवताओं का पूजा-अर्चना के साथ शंख ध्वनि से आह्वान किया जाता है, लेकिन हिमालय की तलहटी पर मौजूद बदरीनाथ धाम में शंखनाद नहीं किया जाता है।
वैज्ञानिक तर्क
बदरीनाथ में शंख नहीं बजाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथ्य हैं। यह इलाका अधिकांश समय बर्फ से ढका रहता है। शंख से निकली ध्वनि पहाड़ों से टकरा कर प्रतिध्वनि पैदा करती है। इस वजह बर्फ में दरार पड़ने अथवा बर्फीले तूफान आने की आशंका बनी रहती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि विशेष आवृत्ति वाली ध्वनियां पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसे में पहाड़ी इलाकों में भूक्षरण भी हो सकता है। संभावना है कि आदिकाल से इसी वजह से यहां शंख नहीं बजाया जाता है।
धार्मिक मान्यताएं
इसके अलावा शंख नहीं बजाने के पीछे धार्मिक मान्यताएं भी हैं। बदरीनाथ में शंख न बजाए जाने का एक आध्यात्मिक कारण भी है। शास्त्रों के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी बदरीनाथ में बने तुलसी भवन में ध्यान कर रहीं थी। तभी भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नामक राक्षस का वध किया था। चूंकि हिंदू धर्म में विजय पर शंख नाद करते हैं, लेकिन विष्णु जी लक्ष्मी जी का ध्यान भंग नहीं करना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने शंख नहीं बजाया। माना जाता है कि इसी वजह से बदरीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है।
पौराणिक कथाएं
एक अन्य कथा के अनुसार अगसत्य मुनि केदारनाथ में राक्षसों का संहार कर रहे थे। तभी उनमें से दो राक्षस अतापी और वतापी वहां से भागने में कामयाब हो गए। बताया जाता है कि राक्षस अतापी ने जान बचाने के लिए मंदाकिनी नदी का सहारा लिया। वहीं राक्षस वतापी ने बचने के लिए शंख का सहारा लिया। वो शंख के अंदर छुप गया। माना जाता है कि अगर उस समय कोई शंख बजा देता तो असुर उससे निकल के भाग जाता। इसी वजह से बदरीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है।
बदरीनाथ मंदिर के नाम में एक रहस्य छुपा है। पुराणों के अनुसार जब भगवान विष्णु ध्यान में लीन थे, तब बहुत ज्यादा बर्फ गिरने लगी थी। इसके चलते पूरा मंदिर भी ढक गया था। तब माता लक्ष्मी ने बदरी यानि एक बेर के वृक्ष का रूप ले लिया था। ऐसे में विष्णु जी पर गिरने वाली बर्फ अब बेर के पेड़ पर गिरने लगी थी। इससे विष्णु जी हिमपात के कहर से बच गए। मगर वर्षों बाद जब विष्णु जी ने देवी लक्ष्मी की ये हालत देखी तो वे भावुक हो गए। उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा कि उनके कठोर तप में वो भी उनकी भागीदार रही हैं।
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Web Title conch is not played in badrinath dham