मानसरोवर का नाम सुनते ही हर किसी का मन शिवमय हो जाता है। कैलाश पर्वत समुद्री सतह से 22068 फुट की ऊंचाई पर तिब्बत (चीन) में है। कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर झील के पास स्थित कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar Lake) पर शिव-शंभू का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहां शिव-शंभू विराजते हैं। पुराणों के अनुसार यहां शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थान को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहां एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफी बढ़ जाती है।
हिंदुओं के अलावा बौद्ध और जैन धर्म में भी कैलाश मानसरोवर को पवित्र तीर्थस्थान के रूप में देखा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती हैं, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति मानसरोवर झील की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाए स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाए स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है।
मान्यता है कि कैलाश मेरू पर्वत है, जो ब्राह्मंड की धुरी है। पुराणों के अनुसार मानसरोवर झील (kailash mansarovar lake) की एक बार परिक्रमा से एक जन्म तथा दस परिक्रमाओं से हजार जन्मों के पापों का नाश और 108 बार परिक्रमा करने से प्राणी भवबंधन से मुक्त होकर ईश्वर में समाहित हो जाता है। शिव पुराण के अनुसार कुबेर ने इसी स्थान पर कठिन तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कैलाश पर्वत को अपना स्थायी निवास तथा कुबेर को अपना सखा बनने का वरदान दिया था। शास्त्रों में इसी स्थान को पृथ्वी का स्वर्ग और कुबेर की अलकापुरी की संज्ञा दी गई है।
कैलाश मानसराेवर में दर्शनीय जगहें
गाैरी कुंड : इस कुंड की चर्चा शिव पुराण में की गई है और इस कुंड से भगवान गणेश की कहानी भी मिलती है। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने इसी जगह पर भगवान गणेश की मूर्ति में प्राण फूंके थे। इन पौराणिक कहानियों के होने की वजह से इस स्थान का अध्यात्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही गहरा महत्व है। यहां पर जाने वाले लोगों को इस कुंड के जल की सतह पर छोटा कैलाश के शिखर का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। यह दृश्य अत्यंत मनोरम होता है।
मानसरोवर झील : यह झील कई पौराणिक कथाओं में वर्णित है। प्रतिवर्ष कई श्रद्धालू केवल इसमें स्नान करने के लिए आते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस झील में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं के सारे पाप कट जाते हैं और मरणोपरांत उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि कई सनातन देवी-देवता इस झील में स्नान करने आया करते थे। अतः यह झील सदैव दैवी शक्तियों और पवित्रताओं का केंद्र रही है।
राक्षस तल : राक्षस तल 4115 मीटर ऊपर स्थित है। इस स्थान का संबंध लंकापति रावण से माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी जगह पर तप करके लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न किया था और शिव प्रकट हुए थे। इसके उपरांत रावण ने भगवान शिव को कैलाश छोड़ कर लंका चलने का आग्रह किया था। भगवान शिव इस शर्त पर रावण के साथ लंका जाने के लिए राजी हुए थे कि रावण बीच मार्ग में कहीं भी उनके शिवलिंग को धरती पर नहीं रखेंगे।
कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar Lake) की यात्रा के लिए भारत सरकार की ओर से कई व्यवस्थाएं की जाती हैं। लोग या तो सरकारी माध्यम से इस जगह की यात्रा कर सकते हैं अथवा खुद से भी जा सकते हैं। उत्तरांचल पुलिस और आईटीबीपी की तरफ से कुमाऊ मंडल विकास निगम की योजनाओं के साथ श्रद्धालुओं को इस स्थान का दर्शन कराया जाता है। यह यात्रा भारत और चीन के बीच समझौते के तहत होती है, अतः इस तीर्थ यात्रा को हर तरह की कूटनीतिक सुरक्षा दी जाती है। यात्रा का कुल खर्च 65000 रुपये का होता है, जिसमें से 20-25 हजार रुपये कई राज्य सरकारों की ओर से सब्सिडी के तौर पर दी जाती है।
यात्रा के लिए भारत सरकार हर साल जनवरी में विज्ञापन जारी करती है। आवेदन के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगता है। दस्तावेजों में 2 पासपोर्ट साइज की तस्वीर और वैद्य पासपोर्ट की आवश्यकता होती है। आवेदन का अंतिम समय प्रति वर्ष 15 से 20 मार्च के दौरान होता है। सभी चुने गए श्रद्धालुओं को अप्रैल के अंतिम दिनों में चयन की सूचना दी जाती है और मई के तीसरे सप्ताह के अंदर डिमांड ड्राफ्ट भेजने को कहा जाता है। यह खर्च कुल यात्रा खर्च के साथ जोड़ दिया जाता है। यह चार्ज रिफंडेबल नहीं होता है।
कैसे जाएं कैलाश मानसरोवर
भारत सरकार सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर यात्रा का प्रबंध करती है। यहां तक पहुंचने में करीब 28 से 30 दिनों तक का समय लगता है। यहां के लिए सीट की बुकिंग एडवांस भी हो सकती है और निर्धारित लोगों को ही ले जाया जाता है, जिनका चयन विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है। वायु मार्ग से काठमांडू तक पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर झील तक जाया जा सकता है। कैलाश तक जाने के लिए हेलिकॉप्टर की सुविधा भी ली जा सकती है। काठमांडू से नेपालगंज और नेपालगंज से सिमिकोट तक पहुंचकर, वहां से हिलसा तक हेलिकॉप्टर से पहुंचा जा सकता है। काठमांडू से ल्हासा के लिए चाइना एयर वायुसेवा उपलब्ध है, जहां से तिब्बत के विभिन्न कस्बों – शिंगाटे, ग्यांतसे, लहात्से, प्रयाग पहुंचकर मानसरोवर पहुंच सकते हैं।
कैलास मानसरोवर (kailash mansarovar lake) जाने के अनेक मार्ग हैं किंतु उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा से अस्कोट, खेल, गर्विअंग, लिपूलेह, खिंड, तकलाकोट होकर जाने वाला मार्ग अन्य मार्गाें से सरल है। यह भाग 338 मील लंबा है और इसमें अनेक चढ़ाव उतार है। जाते समय सरलकोट तक 44 मील की चढ़ाई है, उसके आगे 46 मील उतराई है। मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम हैं, जहां यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के लिए याक, घाेड़े, कुली आदि मिलते हैं। तकलाकोट तिब्बत स्थित पहला गांव है जहां प्रतिवर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक तक बड़ा बाजार लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता है।
श्रद्धालु दिल्ली से उत्तराखंड के काठगोदाम होते हुए आधार शिविर धारचूला पहुंचने के बाद पहले पडाव पांग्ला से पैदल यह यात्रा प्रारंभ करते हैं। धारचूला और नाभीढांग होते हुए कुल 75 किलोमीटर दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों को पैदल पार करके विभिन्न यात्री दल लिपुपास से चीन शासित तिब्बत में प्रवेश करते हैं। गुंजी के बाद भारत के साढ़े 16 हज़ार फुट की उंचाई पर स्थित लिपुपास से चीन सरकार इस यात्रा को अपने हाथ में ले लेती है। इस मार्ग पर भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस भी श्रद्धालुओं को सहयोग देती है।
कैलाश मानसरोवर का मौसम
तिब्बत शुष्क और ठंडा प्रदेश है। इसलिए यहां जाने वाले श्रद्धालुओं को हर तरह के मौसम के लिए तैयार रहना पड़ता है। जून, जुलाई से सितंबर के महीने तक यहां का तापमान 15 से 20 डिग्री के मध्य रहता है। इन महीनों में दोपहर में हवाएं चलती हैं व सुबह-शाम का तापमान 0 डिग्री या उससे भी कम हो सकता है। इसलिए गर्मियों के माैसम में यहां जाने का अलग ही मजा हाेता है।
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(Religious Places from The Himalayan Diary)
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