उर्गम घाटी में है पंच केदारों में से एक कल्पेश्वर मंदिर, भगवान शिव की जटाओं की यहां होती है पूजा

Kalpeshwar Mahadev Temple

उत्तराखंड में कई ऐतिहासिक और प्रसिद्द धार्मिक स्थल मौजूद हैं। हर साल देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु प्रदेश के धार्मिक स्थलों के दर्शन करने के लिए आते हैं। हम आपको उत्तराखंड के पंच केदारों में से एक कल्पेश्वर महादेव मंदिर (Kalpeshwar Mahadev Temple) के बारे में बता रहे हैं। समुद्र तल से लगभग 2134 मीटर की ऊंचाई पर उर्गम घाटी में बसा हुआ यह धार्मिक स्थल पंच केदार का पांचवा क्षेत्र कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर ही महिषरूपधारी भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है। पूरे साल किसी भी मौसम में यहां दर्शन करने के लिए भक्त आ सकते हैं। इस स्थान को उसगम के नाम से भी जाना जाता है। यहां के गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है।

उर्गम घाटी अपने सेब के बगीचों और पहाड़ी आलू की खेती के लिए भी प्रसिद्द है। इससे मंदिर की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। मान्यता है कि यहां पर कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर दुर्वासा ऋषि ने घोर तपस्या की थी। यहां के मुख्य मंदिर को अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के पास ही एक कलेवरकुंड भी है, जिसका पानी हमेशा स्वच्छ रहता है। भगवान शिव को अर्घ्य देने के लिए इसी पवित्र जल का उपयोग किया जाता है। कल्पेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए गुफा के अंदर एक किलोमीटर का रास्ता पैदल चलकर पार करना पड़ता है। यहां भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है।

कल्पेश्वर मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा बहुत ही प्रसिद्द है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करना चाहते थे, क्योंकि युद्ध के दौरान उनके हाथों से अपने परिवारजनों और ब्रह्म हत्या हुई थी। भगवान श्री कृष्ण की सलाह पर पांडव भगवान शिव से माफी मांगने वाराणसी पहुंचे। युद्ध के दौरान हुई अन्यायपूर्ण घटनाओं के कारण भगवान शिव पांडवों से नाराज थे, इसलिए भगवान शिव वाराणसी से गुप्तकाशी पहुंच गए। जब भगवान शिव का पीछा करते हुए पांडव भी गुप्तकाशी पहुंचे, तो भगवान शिव ने नंदी (बैल) का रूप धारण कर लिया। जब पांडवों में से एक भीम ने नंदी की पूंछ पकड़ने की कोशिश की तो नंदी गुप्तकाशी से गायब हो गया। कथा के अनुसार गुप्तकाशी से गायब होने के बाद उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ। आज यहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। इसके अलावा भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमाहेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई, इसलिए कल्पेश्वर को पंचकेदार में से एक माना जाता है।

कैसे पहुंचें Kalpeshwar Mahadev Temple

वैसे तो कल्पेश्वर मंदिर किसी भी मौसम में जाया जा सकता है, लेकिन मार्च से अगस्त महीने के बीच जहां जाना सर्वश्रेष्ठ होता है। कल्पेश्वर मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा 269 किलोमीटर दूर देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। कल्पेश्वर से नजदीकी रेलवे स्टेशन 251 किलोमीटर दूर ऋषिकेश में स्थित है। कल्पेश्वर तक पहुंचने के लिए ऋषिकेश, देहरादून और हरिद्वार से बस सेवा भी उपलब्ध हैं। आप टैक्सी लेकर भी यहां तक पहुंच सकते हैं।

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Web Title kalpeshwar-temple-is-one-of-panch-kedar-situated-on-urgam-valley-in-uttarakhand

(Religious Places from The Himalayan Diary)

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