उत्तराखंड के चमोली जिले में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माता अनुसूया देवी मंदिर (Anusuya Devi Temple) क्षेत्र के लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां माता के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। गुप्तकाशी-गोपेश्वर मार्ग पर स्थिल मंडल कस्बे से करीब छह किलोमीटर दूर पहाड़ पर स्थित देवी अनुसूया को समर्पित यह मंदिर समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर बना है। घने जंगलों के बीच बसे इस पवित्र धार्मिक स्थान पर हर साल दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। इस दौरान यहां नौदी मेले का भी आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में जुटने वाले भक्त अपने साथ देव डोलियों को लेकर यहां पहुंचते हैं। यहां से कुछ दूरी पर अत्री मुनि का आश्रम है। यहां देवडोलियों की परिक्रमा के साथ इस मेले का समापन होता है। मान्यता है कि अनुसूया देवी को सती शिरोमणि का दर्जा दिया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है।
अनुसूया देवी मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा बहुत ही प्रचलित है। कथा के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र व सप्त ऋषियों में वर्णित मह्रिषी अत्री ने इस स्थान को अपनी तपस्या का स्थान बनाया था। उनकी पत्नी अनुसूया ने यहां एक कुटिया का निर्माण किया और वह यहीं रहने लगी। देवी अनुसूया के बारे में कहा जाता है कि वह पतिवर्ता थी और यह बात तीनों लोकों में फैल गयी थी। जब यह बात मां पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती को पता चली, तो उनके मन में क्रोध की भावना आ गई। उन्होंने अनुसूया देवी की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव , भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी को देवी अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए भेजा। तीनों भगवान जाना नहीं चाहते थे, लेकिन देवियों के बार-बार कहने पर तीनो साधुओं का रूप धारण करके अनुसूया देवी के आश्रम पहुंचे। जब अनुसूया देवी तीनों साधुओं के सामने भोजन लेकर पहुंची, तो साधुओं ने अनुसूया देवी के सामने शर्त रखी कि अगर वह नग्न अवस्था में आकर उन्हें भोजन परोसेंगी तो ही वह भोजन स्वीकार करेंगे।
साधुओं की बात को सुन अनुसूया देवी चिंता में डूब गईं और आंखे बंद कर अपने पति का ध्यान किया। इससे उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई और उन्हें साधुओं के भेष में उपस्थित देवों के बारे में जानकारी हो गई। इसके बाद अनुसूया देवी ने उन साधुओं के सामने शर्त रखी कि अगर वह शिशु रूप लेकर उनका पुत्र बन जाते हैं, तो वह उनकी मांग को मान सकती हैं। इस बात को सुनकर तीनों देव शिशु रूप में बदल जाते हैं और फलस्वरूप माता अनुसूया निवस्त्र होकर तीनों देवों को भोजन करवाती हैं। इस तरह तीनों देव माता अनुसूया के पुत्र बनकर वहीं रहने लगते हैं। जब काफी समय बीत जाने के बाद भी तीनों देव देवलोक नहीं पहुंचे, तो मां पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती चिंतित मन से आश्रम पहुंचीं और माता अनुसूया से माफी मांगी। तीनों देवियों की प्रार्थना के बाद माता अनुसूया ने तीनों देवों को उनका रूप प्रदान कर दिया। तभी से माता अनुसूया को “मां सती अनुसूया” के नाम से जाना जाता है।
कैसे पहुंचें
अनुसूया देवी के मंदिर जाने के लिए आपको सबसे पहले चमोली आना होता। चमोली जिले के मुख्यालय से अनुसूया देवी का मंदिर 13 किलोमीटर दूर है। चमोली सीधे तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग 58 से जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश, पौड़ी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, उखीमठ, श्रीनगर, गोपेश्वर आदि प्रमुख शहरों से चमोली के लिए नियमित बसें चलती हैं। चमोली से नजदीकी मुख्य रेलवे स्टेशन 202 किलोमीटर दूर हरिद्वार में है। यह रेलवे स्टेशन दिल्ली, लखनऊ और देहरादून से सीधा जुड़ा हुआ है। यहां से निकटतम हवाई अड्डा 222 किलोमीटर दूर देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। दिल्ली से चमोली की दूरी 443 किलोमीटर है।
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Web Title mata sati anusuya devi temple located in chamoli