क्याकिंग एंड केनोईंग एसोसिएशन के अनुसार नयार नदी क्याकिंग, केनोईंग समेत अन्य वाटर स्पोर्ट्स के लिए उपयुक्त है। इससे क्षेत्र में पर्यटन की गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। खैरासैंण गांव में ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का बचपन बीता है।
uttarakhand temple
श्रद्धालुओं के लिए खुशखबरी, फूलों की घाटी के बाद अब जल्द हेमकुंड साहिब के कपाट खोलने की तैयारी
by THD Teamश्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा सिखों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यहां पर सिखों के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने साधना की थी। इस जगह का उल्लेख दसम ग्रंथ में भी है, जो स्वयं गुरु जी द्वारा लिखी गई है। इस जगह का इतिहास रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि भगवान लक्ष्मण ने इसी जगह पर ध्यान लगाया था।
लाटू देवता का मंदिर साल में केवल एक बार ही खोला जाता है। वैशाख पूर्णिमा के दिन यहां के पुजारी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर के द्वार खोलते हैं। वहीं श्रद्धालु दूर से ही देवता के दर्शन कर पाते हैं। मंदिर के द्वार खोले जाने पर विष्णु सहस्त्रनाम और भगवती चंडिका पाठ किया जाता है।
दारमा घाटी की खूबसूरती का असली मजा लेने के लिए पर्यटक दुग्तू और दांतू गांव पहुंचते हैं। यह दोनों गांव दारमा घाटी के सबसे खूबसूरत छोर पर एक-दूसरे के सामने बसे हुए हैं। यहां से पंचाचूली चोटियों का कभी ना भूलने वाला नजारा दिखाई देता है। दुग्तू गांव को पंचाचूली का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यहां से पंचाचूली ग्लेशियर तक जाने का ट्रैक है, जो महज तीन से चार किलोमीटर का है।
उत्तराखंड के कांकुल दर्रे के पास है पवित्र कागभूशुंडी ताल, यहीं पर सबसे पहले सुनाई गई थी रामायण
by THD Teamयहां हरी घास के मैदान, कल-कल छल-छल नदियां और अल्पाइन वन से सजा हुआ कागभुशंडी ट्रैक बेहद सुकून प्रदान करता है। इस ट्रेक रूट में बड़ी झाड़ियों, नदियों, ग्लेशियरों, दर्रों, दरारों और फिसलन वाले चट्टानी क्षेत्र का सामना करना पड़ता है।कागभुसंडी ताल के ऊपर दो विशाल अनियमित आकार की चट्टानों को हाथी पर्वत के किनारे पर बैठे देखा जा सकता है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार वे कागा (कौवा) और गरुड़ (ईगल) हैं, जो चर्चा कर रहे हैं।
रुद्रप्रयाग में है सिद्ध पीठ श्री कालीमठ मंदिर, यहां आज भी महसूस होता है मां काली के होने का एहसास
by THD Teamमंदिर के नजदीक ही कालीशीला है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी शीला पर माता काली ने दानव रक्तबीज का वध किया था। मान्यता है कि इस शीला से हर साल दशहरे के दिन खून निकलता है।
एक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित करने के लिए इस स्थान पर भगवान शिव को 1000 फूल अर्पित किए थे। इसलिए इस जगह का नाम कमलेश्वर मंदिर पड़ा।
ऋषिकेश की चौरासी कुटिया ने दिलाई भारतीय योग को खास पहचान, बीटल्स बैंड ने ली थी ध्यान की दीक्षा
by THD Team6 फरवरी 1968 को बीटल्स ग्रुप के सदस्य चौरासी कुटिया आए। यहां रहते हुए बीटल्स ग्रुप के सदस्यों ने 48 गीतों की रचना की। इन गीतों ने बाद में पूरे विश्व में धूम मचाई।
इस बुग्याल के बीचों-बीच फैली झील यहां के सौंदर्य में चार चांद लगी देती है। जो लोग झील किनारे बैठकर प्रकृति की खूबसूरती का आनंद लेना चाहते हैं, वह यहां आ सकते हैं। बेदिनी बुग्याल आते समय रास्ते में ब्रह्मताल और भैकनताल जैसी झीलें भी आती हैं, जहां आप पानी में गोता लगाने के साथ पत्थरों पर बैठकर पानी का आनंद ले सकते हैं।