मिनी कश्मीर के नाम से मशहूर डोडा जिले का भद्रवाह अपने प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक विरासत के लिए जाना जाता है। देवदार वृक्षों से घिरे भद्रवाह में प्राकृतिक स्थलों के अलावा कई धार्मिक स्थल भी हैं, जिनमें लोगों की गहरी आस्था है। इन्हीं धार्मिक स्थलों में एक वासुकी नाग मंदिर (Vasuki Nag Temple) है। यह धार्मिक स्थल कश्यप और कद्रू के पुत्र वासुकी को समर्पित है। भगवान वासुकी को नागों का राजा माना जाता है। हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, वासुकी नागों के राजा हुआ करते थे जिनके माथे पर नागमणि लगी थी। वासुकी नाग मंदिर के प्रति क्षेत्र के लोगों की गहरी आस्था है।
वासुकी नाग मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला का अद्भुत नमूना है। मंदिर में भगवान वासुकी नाग और राजा जमुट वाहन की मूर्ति स्थापित है। दोनों प्रतिमाओं को एक ही पत्थर पर तराशा गया है। यह प्रतिमाएं बिना किसी सहारे के 87 डिग्री पर झुकी हुई हैं। सात सिर वाले भगवान सर्प ‘वासुकी नाग’ को समर्पित एक वार्षिक तीर्थ यात्रा और भद्रवाह की कैलाश यात्रा इस मंदिर में अनुष्ठान पूजा के बाद ही शुरू होती है। वासुकी नाग मंदिर से कुछ दूर नागराज वासुकी का निवास स्थान कैलाश कुंड या कपलाश है, जिसे वासुकी कुंड के नाम से भी जाना जाता है। हर साल दूर-दूर से हजारों भक्त भगवान वासुकी के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं।
मान्यता है कि भद्रवाह के राजा धूरी पाल अपने राज्य के वासक डेरा में वासुकी नाग की प्रतिमा की स्थापना करना चाहते थे। वासुकी नाग की एक सुंदर मूर्ति को शानू समुदाय के पूर्वजों द्वारा बनाया गया था, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी राजा धूरी पाल इन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित करने में विफल रहा। ऐसे में कुछ पुजारियों ने राजा को एक ब्राह्मण की बलि देने के लिए कहा ताकि नकारात्मक शक्ति वासुदेव को छोड़ दे। राजा के एक सलाहकार ने उन्हें देव राज और बोध राज नाम के ब्राह्मण भाईयों को पकड़ने का सुझाव दिया। जब दोनों भाइयों को पकड़कर राजा के सामने लाया गया, तो उनमें से एक भाई बोध राज ने राजा से कहा कि मैं अपने सर को काटने के लिए तैयार हूं लेकिन सर कटने के बाद मेरा शरीर जहां तक चलेगा, वहां तक की जमीन मेरे भाई को दी जाए और कोई भी मेरे शरीर को चलने से रोकेगा नहीं।
राजा ने यह सोचकर बोध राज की शर्त मान ली कि बिना सिर वाला शरीर कितनी दूर तक चल पाएगा। लेकिन बलि की रस्म के बाद बोध राज का शरीर जाग गया और भद्रवाह में चलना शुरू कर दिया। जब ब्राह्मण के शरीर ने मीलों का सफर तय कर लिया तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ। वहीं शर्त के अनुसार राजा ने ब्राह्मण के शरीर चलने से रोकने की कोशिश भी नहीं की। इसके बाद राजा ने वासुकी नाग देवता की पूजा की और उनसे मदद मांगी। इस पर वासुकी नाग देवता ने एक गाय के रूप में दर्शन दिए और ब्राह्मण के शरीर को चलने से रोका।
कैसे पहुंचें Vasuki Nag Temple
यह प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भद्रवाह से महज तीन किलोमीटर दूर है। इस दूरी को वाहन की मदद से या पैदल तय किया जा सकता है। भद्रवाह से जम्मू की दूरी लगभग 185 किलोमीटर है। इस दूरी को सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पार किया जा सकता है। भद्रवाह से नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन जम्मू में हैं। जम्मू हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन देश के कई प्रमुख शहरों से सीधे जुड़े हुए हैं।
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Web Title vasuki-nag-temple-in-bhaderwah-of-jammu-kashmir
(Religious Places from The Himalayan Diary)
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