ब्रह्मकूट पर्वत पर है श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ, महादेव के लिए मां सती ने यहां की थी तपस्या

Bhuvneshwari Siddhpeeth

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में श्री नीलकंठ महादेव मंदिर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर ब्रह्मकूट पर्वत के शिखर पर बसे भौन गांव में माता सती को समर्पित श्री मां भुवनेश्वरी सिद्धपीठ (Bhuvneshwari Siddhpeeth) है। भौन गांव प्रकृति की गोद में बसा एक मनोरम पहाड़ी गांव है। इसके मध्य में श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ स्थित है। यहां माता भुवनेश्वरी का रूप लाल बजरंगी के रूप में प्रदर्शित है। यह धार्मिक स्थल क्षेत्र में स्थित करीब आठ गांवों के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां माता के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। श्रावण मास तथा शारदीय नवरात्र के दौरान यहां मेले का आयोजन भी होता है। इस दौरान यहां की खूबसूरती देखने लायक होती है।

श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ की व्यवस्था के लिए कोई समिति नहीं बनी हुई है, बल्कि वर्षों से एक ही वंश के पंडित एक वर्ष तक बारी-बारी से मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। तीर्थनगरी ऋषिकेश के करीब होने के कारण यहां ठहरने और भोजन करने की कोई समस्या नहीं आती है। मंदिर परिसर के आसपास जलपान आदि की दुकाने हैं। श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर बाबा भैरवनाथ जी की गुफा है। झिलमिल गुफा के नाम से प्रसिद्द इस गुफा में श्रद्धालु बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं। मनोरम दृश्य और सौंदर्य से परिपूर्ण यह जगह यात्रियों को आनंदित कर देती है। श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ (Maa Bhuvneshwari Siddhpeeth) से जुडी एक पौराणिक कथा बहुत ही प्रचलित है।

कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के बाद भगवान शिव उसके प्रभाव को शांत करने के लिए बिना किसी को बताए मणिकूट पर्वत की घाटी में मणिभद्रा व चन्द्रभद्रा नदी के संगम पर स्थित बरगद की छांव तले समाधिस्थ हो गए। इसके बाद माता सती, शिव के परिजन तथा समस्त देवतागणों ने भगवान शिव को खोजना शुरू कर दिया। खोजते-खोजते करीब 40 हजार वर्ष बीत गए, जिसके बाद माता सती को पता चला कि भगवान शिव मणिकूट पर्वत की घाटी में समाधिस्थ है। इसके बाद माता सती जब वहां पहुंची तो देखा भगवान शिव की समाधि नहीं खुली है। ऐसे में माता सती भी ब्रह्म कूट नामक पर्वत के शिखर पर बैठकर तपस्या करने लगी। करीब 20 हजार वर्ष और बीत जाने के बाद भगवान शिव की समाधि खुली। माता सती के इस अनन्य तप के कारण यह स्थान सिद्धपीठ कहलाया। देवताओं के आग्रह पर माता यहां पिंडी रूप में विराजमान हुईं।

कैसे पहुंचें Shri Bhuvneshwari Siddhpeeth

नीलकंड मंदिर से श्री भुवनेश्वरी मंदिर तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। पहला रास्ता नीलकंठ मंदिर से सिद्धबली बाबा के मंदिर होते हुये लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबा है, जबकि दूसरा रास्ता लगभग 3 किलोमीटर लंबा कच्ची सड़क मोटर मार्ग है। श्री भुवनेश्वरी मंदिर से नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून में स्थित है, जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार में स्थित है। दोनों ही जगहों से बस या टैक्सी की मदद से आसानी से श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ तक पहुंचा जा सकता हैं।

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Web Title maa-bhuvneshwari-devi-siddhpeeth-in-uttarakhand

(Religious Places from The Himalayan Diary)

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