देवभूमि हिमाचल के ज्वाली कस्बे के पास स्थित बाथू की लड़ी मंदिर (Bathu Ki Ladi Temple) पोंग डैम का जलस्तर कम होने के कारण एक बार फिर दिखने लगे हैं। मान्यता है कि इन मंदिरों का निर्माण अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने किया था। यहीं पर पांडवों ने स्वर्ग जाने वाली सीढ़ियों का भी निर्माण किया था। बरसात में पोंग डैम का जलस्तर बढ़ने के चलते यह मंदिर साल के करीब 8 महीने पानी में डूबे रहते हैं। अब गर्मियां शुरू होते ही जलस्तर घटने के चलते यह मंदिर फिर से दिखने लगे हैं। हालांकि अभी इन तक पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ रहा है। पानी में डूबे मंदिरों को देखने के लिए इन दिनों यहां लोगों की खूब भीड़ जुट रही है।
अभी यह मंदिर पानी के ऊपर आधे ही दिख रहे हैं। जैसे जैसे गर्मी बढ़ने के साथ पौंग डैम का पानी कम होगा, मंदिरों की पूरी श्रृंखला बाहर आ जाएगी और लोग पैदल या दुपहिया से इन मंदिरों तक पहुंच सकेंगे। पौंग डैम के निर्माण के बाद से ही यह मंदिर हर साल पानी में डूब जाते हैं। सदियों पहले इनका निर्माण होने के बावजूद भी इन मंदिरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। हालांकि मंदिरों को ज्यादा करीब से देखने के चक्कर में कई लोग पानी में कूदने की वजह से खुद को खतरे में जरूर डाल लेते हैं। यहां डूबकर कई लोगों की जान भी जा चुकी है। प्रशासन की ओर से यहां पानी में न उतरने की चेतावनी भी जारी की हुई है।
बाथू की लड़ी कांगड़ा जिले में ज्वाली कस्बे से करीबन आधा घंटे की दूरी पर मंदिरों का एक समूह है। इसकी खासियत यह है कि इन मंदिरों के सिर्फ 4 महीने के लिए ही भक्त दर्शन कर पाते हैं। आश्चर्य वाली बात है कि पानी के अंदर रहने के बाद भी इन मंदिरों को नुकसान नहीं होता है। इन मंदिरों की बुनियाद बेहद मजबूत है। मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां इन मंदिरों का निर्माण करके शिवलिंग की स्थापना की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार पांडवों ने यहीं से स्वर्ग तक जाने के लिए सीढ़ियां बनाने का फैसला किया था। सीढ़ियां बनाने के लिए भगवान कृष्ण ने पांडवों को जो समय दिया था, उस समय में पांडव इस काम को पूरा नहीं कर सके।
इस स्थल का नाम बाथू की लड़ी पड़ने के पीछे की दिलचस्प वजह है। दरअसल यहां बने सभी मंदिर एक खास किस्म के पत्थर से बने हैं, जिन्हें बाथू कहा जाता है। इस स्थल को दूर से देखने पर सभी मंदिर एक माला में पिरोए हुए दिखते हैं। इसलिए इस खूबसूरत स्थल को बाथू की लड़ी (बाथू की माला) कहा जाता है। ज्वाली से इन मंदिरों की दूरी करीब 35 किलोमीटर की है। ज्वाली में छोटा रेलवे स्टेशन भी है, जो पठानकोट में ब्रॉडगेज स्टेशन से जुड़ा हुआ है। जवाली से मंदिर तक जाने के लिए बस मिलती हैं। बस आपको मंदिर से 3 किलोमीटर दूर धमेटा नामक गांव तक पहुंचाती हैं। यहां से मंदिर तक पैदल ही जाना पड़ता है।
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